सरगुजा जिले के राजधानी अम्बिकापुर से 40 कि. मी. दूर उत्तर दिशा में स्थित प्रतापपुर क्षेत्र के बांक नदी के पावन तट पर स्थित है एक अलौकिक पारदेश्वर शिव मंदिर, जिसकी अलौकिकता और भव्यता साधकांे को मंत्रमुग्ध सा कर देता है।
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर के सभी मूर्ति तथा शिवलिंग अष्ट संस्कार सम्पन्न पारद से बने हुए है जिसमें भगवान शंकर माता पार्वती गणपती तथा कार्तिकेय जी के प्रतिमा के साथ स्वामी निखिलेश्वरानन्द महाराज जी की भव्य प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही साथ 11 कि.ग्रा. का चरण पादुका तथा दो पारद शिवलिंग है जिसमें 1 पारद शिवलिंग का वजन 21 कि.ग्रा. है तथा दूसरे का 151 कि.ग्रा. है, तथा पारद शिवलिंग के सामने ही 51 कि.ग्रा. पारे से बना नन्दी भी विराजमान हैं।
ऐसा दुर्लभ और अलौकिक पारदेश्वर मंदिर विश्व में शायद ही कहीं देखने को मिल सकता है। पुराणों में भी पारदेश्वर भगवान का बखान करते हुये कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में मात्र एक बार भी पारदेश्वर शिवलिंग का दर्शन कर ले उसके जन्म जन्मान्तर के करोड़ो पाप समाप्त हो जाते हैं तथा उसका जीवन धन्य हो जाता है तथा उसके घर में कभी भी दरिद्रता नहीं आती।
परम पूज्य सद्गुरूदेव डाॅ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के पावन कर कमलों द्वारा प्रदत्त पारदेश्वर शिवलिंग तथा पूज्य गुरूदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली जी एवं श्री अरविन्द श्रीमाली जी के द्वारा 8 सितम्बर सन् 2000 को विशेष मंत्रो द्वारा प्राण प्रतिष्ठित कर स्थापित किया गया। तब से लगातार मंदिर के सेवक श्री मुरलीधर पाण्डेय जी के द्वारा विधि विधान से पूजन आरती नित्य किया जा रहा है। प्रत्येक माह के 21 तारीख को 25 लीटर गौ दूध से भगवान पारदेश्वर का रूद्राभिषेक किया जाता है। यह लगातार कई वर्षांे से चला आ रहा है। तथा प्रत्येक वर्ष गुरू जन्म दिवस के अवसर पर 21 अप्रैल को भव्य पूजन तथा हवन का कार्यक्रम सरगुजा के समस्त गुरू भाईयों के द्वारा किया जाता है। इस मंदिर में समय समय पर साधकों को अनेकांे प्रकार के अलौकिक अनुभव होते रहते हैं।
मेरा स्वंय का अनुभव है कि इस मंदिर में स्थापित पारदेश्वर भगवान का पूजन करने से जीवन की समस्त समस्याएँ समाप्त हो जाती है, तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हंै।
ग्रन्थों में पारदेश्वर शिवलिंग को दुनिया का सबसे दुर्लभ और अद्वितीय बताया गया है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिलिंगो का सार तथा दुनिया में जितना भी शिव विग्रह स्थापित है। उन सभी स्वरूपों में सर्व श्रेष्ठ स्वरूप भगवान पारदेश्वर को ही माना गाया है।
जिसके बारे में वेदो पुराणों तथा उपनिषदों में अनेकों प्रकार से गुण गान करते हुये कहा गया है कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा अधर्मी या पापी हो या दुष्ट हो चाहे जीवन में कितने ही छल, कपट, अत्याचार, दुराचार, हत्या, गोहत्या या बह्महत्या जैसा भी पाप क्यों न किया हो वह व्यक्ति भी अगर मात्र एक बार पूर्ण श्रध्दा विश्वास के साथ भगवान पारदेश्वर का पूजन अथवा दर्शन मात्र कर ले तो उसके जीवन के सारे पाप दोष एक पल में ही पूर्णतः समाप्त हो जाते हैं। तथा उस व्यक्ति में दिव्यता और पवित्रता का संचार होने लगता है।
हमारे वेदों और पुराणों में पारद से निर्मित मूर्तियों और शिवलिंग के दर्शन तथा पूजन के बारे में जो कुछ भी वर्णित है वह नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शिव निर्णय रत्नाकर:-
मदः कोटिगुणं स्वर्णं स्वर्णात्कोटिगुणं मणिः।
मणेः कोटिगुणं बाणो बालाल्कोटिगुणं रसः।
रसात्परतरं लिंग न भुतो न भविश्यति।।
अर्थात मिट्टी अथवा पत्थर के शिवलिंग के पुजन करके करोड़ों गुणा
अधिक फल स्वर्ण निर्मित शिवलिंग के पुजन से मिलता है स्वर्ण से करोंड़ो गुना अधिक फल मणि और मणि से करोड़ो गुणा अधिक फल बाल लिंग नर्मदेश्वर के पूजन से प्राप्त होता है तथा नर्मदेश्वर बाललिंग से भी करोड़ो गुणा अधिक फल पारद शिवलिंग के पूजन या दर्शन से ही प्राप्त हो जाता है।
रसरत्नसमुच्चय
विधाय रस लिंगं यो भक्ति युक्तःसमचयेत्।
जगत्त्रितयलिंगगाना पूजाफलम वारनुयात्।।
अर्थात् जो भक्ति और श्रध्दा के साथ पारदशिवलिंग की पूजा करता है उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंग की पूजा का फल प्राप्त होता है तथा उसके समस्त महापाप नष्ट हो जाते है।
रसमार्तण्ड़ लिंग कोटि सहस्त्र यत्फलं सम्यगचनात्।
तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद् भवेत्।।
ब्रह्मत्यासहस्त्राणि गोहव्याशतानि च।
तत्क्षणाद्वलयं यन्ति रसलिंगस्य दर्शनात्।।
स्पशनात्प्राप्यते मुक्तिरिती सत्यं शिवोदितम्।।
अर्थात् हजारों करोड़ो शिवलिंगो की पूजा करने से जो फल प्राप्त होता है उससे भी करोड़ो गुना अधिक फल पारद शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है तथा हजारों ब्रह्म हत्याओं और गो हत्याओं का किया गया पाप भी पारद शिवलिंग के मात्र दर्शन करते ही समाप्त हो जाता है तथा पारदशिवलिंग के स्पर्श या पूजन करने से निश्चय ही समस्त प्रकार के भव बंधन से छुटकारा मिल जाता है।
वायवीय संहिता
आयुरायेग्यमैश्वर्यं यच्चान्यदपि वांछिच्तम्।
रसलिंगाचनादिष्टं सर्वतं लभेत नरः।।
अर्थात आयु आरोग्य ऐश्वर्य तथा अन्य जो भी मनो वांछित वस्तुएं है। वे सभी वस्तुएँ पारद शिवलिंग के पूजन से सहज ही प्राप्त हो जाती है।
ब्रह्म पुराण
धन्यास्ते पुरूषाः लोके येअर्चयंति रसेश्वरम्।
सर्वपापहरं देवं सर्व कामफलप्रदम्।।
ब्रह्मणाः क्षत्रियाः वैश्यास्त्रियः शुद्रान्त्यजादयः।
सम्पूज्य तं सुखम प्राप्नुवन्ति परां गतिम्।।
अर्थात संसार में मनुष्य धन्य है जो समस्त मनोवांछित फलों को देने वाले पारद शिवलिंग का पूजन दर्शन करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण – पच्यतेकाम सुत्रेण यावच्चदिवाकरौ। कृत्वा लिंग सकृत पूज्यं वसेत्काल्पसतं दिवि।।
प्रजावान भुमिवान् पुत्र बांधववास्तथा।
ज्ञानवान् मुक्विान् साधुःरसलिंगार्चनाद् भवंत्
अर्थात् जो मनुष्य एक बार भी अपने जीवन में विधि विधान से पूजन कर लेता है उसे जीवन का पुर्ण सुख प्राप्त होता है तथा उसे जीवन में धन, यश, मान, सम्मान, पद प्रतिष्ठा, पुत्र-पौत्र, विद्या आदि की कोई कमी नहीं रहती। अन्त में निश्चित ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
योगशिखोपनिषद्
रसलिंगमहालिंग शिवशक्ति निकेतनम्
लिंग शिवालय प्रीवन्त सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।
अर्थात् रस ही महालिंग है और इसे पुराणों ने भगवान शिव का शिवालय माना है। जिसके प्राप्त होने पर सम्पूर्ण सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती है।
रस राज चिन्तामणि
ब्रह्मज्ञानेन सो युक्तों यः पापी रसनिंदकः।
नहि त्राता भवैतस्य जन्म कोटिशतैरपि।।
अर्थात् जो व्यक्ति अपने जीवन में पारद शिवलिंग की भूल से भी निंदा करता है उसे धोर पापी समझना चाहिए ऐसा व्यक्ति पारद के क्षेत्र में सफलता पा नहीं सकता और ऐसा व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार की साधना करले मृत्यु से उसको ब्रह्मा भी नहीं बचा सकता।
रस सार पद्धति
रससार पद्धति नामक ग्रन्थ में दो टूक शब्दों में कहा गया है कि –
दशनादशराजस्य बह्मा हत्या ल्यपोहति।
स्पर्शनोन्नाशपेद्देवी गोहथा नात्र संशयः।
किं पुनंमक्षणादेवी प्राप्यते प्रारंभ पदम्।।
अर्थात् पारद शिवलिंग का दर्शन तथा पूजन, ब्रह्म हत्या के दाषोेेें को भी नष्ट कर देता है। इसके दर्शन तथा स्पर्श से पूर्व जन्मकृत समस्त पापों का नाश हो जाता है, और यदि पारद शिवलिंग पर चढ़े हुए जल दूध या पंचामृत का सेवन कर लिया जाये तो व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख और परमपद की प्राप्ति होती है।
शताश्वमेधेन कृतेन पुण्यंगोकोटिभीः स्वर्णयहस्त्र प्रदानात ।
नृणां भवेत्सूतक दर्शनेन यत्सर्वतीथेषु कृताभिषेकात
अर्थात् जो पुण्य 100 अश्वमेध यज्ञ करने, करोडों गोदान करने तथा हजारों तोला स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है वही पुण्य भगवान पारदेश्वर के दर्शन मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता हैै।
रावण भी पारद का अष्ट संस्कार शोधन संपन्न कर पारदेश्वर शिवलिंग का निर्माण कर नित्य पूजन किया करता था तथा उसी पारदेश्वर भगवान की कृपा से अपनी पूरी लंका नगरी को सोने में परिर्वतित कर दिया और साबित कर दिया कि भगवान पारदेश्वर की कृपा से सब कुछ संभव हो सकता है। यदि वास्तव मंे देखा जाए तो भगवान पारदेश्वर का दर्शन अथवा पूजन करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य तथा सबसे बडी़ श्रेष्ठता है, और मेरे स्वयं का मानना है कि जब मनुष्य के सात जन्मों का पुण्य जोर मारता है तब कहीं भगवान पारदेश्वर का दर्शन संभव हो पाता है। पारदेश्वर शिवलिंग को संसार का सबसे दिव्य, दुर्लभ तथा अद्वितिय शिवलिंग माना गया है। जो संपुर्ण मानव जाति के लिए वरदान स्वरूप है।
संसार की समस्त वस्तुएँ कुछ मेहनत और प्रयास से प्राप्त किए जा सकते हैं, मगर पारदेश्वर शिवलिंग का दर्शन तो जन्म जन्मांतर के पुण्यों के प्रताप और भगवान शंकर के असीम कृपा से ही संभव हो सकता है।
यदि आपके मन में पारदेश्वर शिवलिंग के दर्शन करने की इच्छा भी जागृत हो जाये तो समझ लिजिए कि आप के जीवन में सोभाग्य का उदय होने लगा। जिस दिन से आपके मन में भगवान पारदेश्वर का दर्शन या पूज
न करने की दृढ़ इच्छा शक्ति जागृत हो जाय उसी क्षण से आपके पुण्यों का उदय और पापों का समन होने लगता है। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635
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