शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

नवरात्री में नवदुर्गा अराधना



नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति जगदम्बा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। नवरात्र के प्रथम दिन शैल पुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चन्द्रघण्टा, चैथे दिन कुष्माण्डा, पाँचवे दिन स्कन्द माता, छठे दिन कात्यायनी, साँतवे दिन काल रात्रि, आँठवे दिन महागौरी तथा नवें दिन सिद्धिदात्री के रूप में आराधना किया जाता है।
यदि साधक नवरात्रि के नव दिनों तक माँ दुर्गा के नव रूपों की आराधना शास्त्रीय विधि विधान और पूर्ण निष्ठा, भक्ति के साथ करता है तो साधक को समस्त प्रकार की सिद्धियाँ स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।
नवरात्रि के समय माँ दुर्गा की उपासना करने वाले साधकों को एक बात ध्यान देना चाहिए, यदि नव रात्र का प्रथम दिन अमावस युक्त हो तो उस दिन व्रत का अनुष्ठान नहीं करना चाहिए और यदि एकम् तथा द्विज एक ही दिन हो तो अत्यंत शुभ योग होता है।
नवरात्र में माँ दुर्गा की पूजा आराधना के लिए सर्वप्रथम एक मण्डप बनाएँ जो नौ हाथ लम्बा तथा सात हाथ चैडा हो, फिर बीच में एक वेदी भी बनाएँ जो चार हाथ लम्बा चैडा तथा एक हाथ ऊँचा हो। फिर मण्डप को गाय के गोबर से लीप कर ध्वजाओं से सजा लें तथा वेदी पर लाल आसन बिछा कर माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें तथा एक कलश की भी स्थापना करें। मण्डप के बीच में एक हवन कुंड भी बना लें।
फिर माँ आदिशक्ति जगदम्बा से प्रार्थना करें कि हे माता आदिशक्ति आप सर्वशक्तिमान हैं और जगत की माता भी हैं। मंै आपकी पूजा आराधना नवरात्रि के अवसर पर यथा शक्ति सम्पन्न करना चाहता हूँ। हे माता आप मेरी सहायता करें और आर्शीवाद प्रदान करें तथा इस पूजा आराधना में होने वाली त्रुटियों को क्षमा करें।
नवरात्र के प्रथम दिन एक, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन तीन, इस तरह नव दिनों तक नौ, कुवाँरी कन्याओं का पूजन करना चाहिए । पूजन के पश्चात भोजन कराना चाहिए तथा वस्त्रादि भी दान में देना चाहिए साथ ही साथ माँ नवदुर्गा की उपासना पूर्णं शास्त्रोक्त विधि विधान से करनी चाहिए जिसका पूर्ण विधि विधान पुराणों में वर्णित है।
यदि नवरात्रि के समय नवदुर्गा के नव रूपों की आराधना नहीं कर पाते तो नवार्ण मंत्र की साधना कर पुर्ण लाभ उठा सकते हैं। नवार्ण मंत्र की साधना के लिए कोई लम्बा चैडा विधि-विधान नहीं है। नवार्ण मंत्र में नौदुर्गा के नव रूपों का बीजाक्षरों के रूप में पूर्ण समावेश किया गया है।
नवार्ण मंत्र को मंत्र तथा यंत्र दोनों रूपों में सिद्ध किया जा सकता है। नवार्ण यंत्र के सिद्धि के लिए नौ कोष्टक बनाकर नवार्ण मंत्र को लोम-विलोम रूप में स्थापित करना पड़ता है।
इस यंत्र को लिखने तथा मंत्र को जप करने से सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हंै। नवरात्रि के नौ दिनों में इस यंत्र को नौ हजार बार लिखने से यह यंत्र सिद्ध हो जाता है। 
साधना विधि- नवरात्रि के प्रथम दिन पूजा स्थान में स्नान आदि से निवृत हो कर माँ दुर्गा के चित्र के समक्ष बैठ जायें, फिर एक ताम्र पत्र पर नवार्ण यंत्र खुदवाकर रखें, तत्पश्चात् माँ दुर्गा की षोड़शोपचार से पूजन करें फिर संक्ल्प कर माँ दुर्गा का ध्यान तथा विनियोग करें तथा नवार्ण यंत्र को 1 हजार बार कागज पर लिखें, फिर नवार्ण मंत्र की 11 माला चप करें।
मंत्र- ऐं हृीं क्लीं चामुण्डाय विच्चै।।
इसी प्रकार नौ दिनों यंत्र का निमार्ण तथा मंत्र का जप करें। उसके बाद नित्य 101 बार नवार्ण मंत्र का जप करते रहने से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। इसमें कोई संदेह नहीं। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

चमत्कारिक है डाऊजिंग कला


डाउसिग एक प्राचिन कला  है, जिसके द्वारा पारंपरिक तरीकों से जानकार व्यक्ति  जमीन में पानी के श्रोतों का पता लगाने मे किया करते थे। कुछ लोग इसके माध्यम से मकान बनाने से पहले उस भूमी के गुण दोषों का पता लगाने तथा जमीन मे गड़े हुए खजानें का पता लगाने मे भी किया करते थे।
आज भी गावों मे धर बनाने, कुंआँ खोदने बोरबेल कराने से पहले किसी जानकार व्यक्ति से डस स्थान का विषेश प्रक्रिया द्वारा जांच कराया जाता है। स्थल का जांच करने वाला व्यक्ति नारियल को हाथ मे लेकर उस जगह के आस पास घुमता है, और जहाँ पर पानी का अच्छा श्रोत हो वहाँ पर नारियल स्वयं घुमने लगता है। <p style="border-top: 7px solid rgb(92, 138, 100); border-bottom: 7px solid rgb(92, 138, 100); margin: 10px; font-weight: bold; font-size: 12pt; float: right; padding-bottom: 7px; width: 200px; line-height: 100%; padding-top: 7px; text-align: center;">....डाउजिंग के द्वारा किसी भी घटना, समस्या, वास्तुकला ,जीवन साथी का चुनाव वरवधु मिलान, मुकदमे में सफलता असफलता, दोस्त और दुश्मनों की पहचान सब कुछ मालुम किया जा सकता है।:)</p>इसी प्रकार स्थल जांच करने की अनेकों विधियाँ गांवो मंे प्रचलित है। कई लोग मोरपंख, लकड़ी, अगरबत्ती, नरियल आइना अथवा अक्षत के द्वारा भी स्थल का निरिक्षण किया करते हैं, यह सब डाउसिंग कला के ही रूप हैं।
डाउसिंग के द्वारा किसी भी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर प्राप्त किया जा सकता है जैसे जमीन के अंदर कितने फुट पर पानी है, कितना पानी है, पानी मीठा है या खारा इत्यादि सभी प्रकार की जानकरी प्राप्त किया जा सकता है। डाउजिंग के द्वारा किसी भी घटना, समस्या, वास्तुकला ,जीवन साथी का चुनाव वरवधु मिलान, मुकदमे में सफलता असफलता, दोस्त और दुश्मनों की पहचान सब कुछ मालुम किया जा सकता है।
कुछ मनुष्यो में डाउसिंग शक्ति बचपन से ही जाग्रत रहती है जिसे साधना के द्वारा विकसित किया जा सकता है।
अरब देश के एक पेट्रोल के कुयें तलाशने वाले अफ्रीकी डाउजर को पानी का कुँआं तलासने पर अरब के एक शेख ने करोड़ो रूपये का इनाम दिया। यह विडियो सात साल पहले डिस्कवरी चैनल पर प्रसारित हुटा था। अरब देश मे पेट्रोल से महंगा पानी है। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

अलौकिक सिद्ध पारदेश्वर मंदिर


सरगुजा जिले के राजधानी अम्बिकापुर से 40 कि. मी. दूर उत्तर दिशा में स्थित प्रतापपुर क्षेत्र के बांक नदी के पावन तट पर स्थित है एक अलौकिक पारदेश्वर शिव मंदिर, जिसकी अलौकिकता और भव्यता साधकांे को मंत्रमुग्ध सा कर देता है।
इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर के सभी मूर्ति तथा शिवलिंग अष्ट संस्कार सम्पन्न पारद से बने हुए है जिसमें भगवान शंकर माता पार्वती गणपती तथा कार्तिकेय जी के प्रतिमा के साथ स्वामी निखिलेश्वरानन्द  महाराज जी की भव्य प्रतिमा भी स्थापित है। साथ ही साथ 11 कि.ग्रा. का चरण पादुका तथा दो पारद शिवलिंग है जिसमें 1 पारद शिवलिंग का वजन 21 कि.ग्रा. है तथा दूसरे का 151 कि.ग्रा. है, तथा पारद शिवलिंग के सामने ही 51 कि.ग्रा. पारे से बना नन्दी भी विराजमान हैं।
ऐसा दुर्लभ और अलौकिक पारदेश्वर मंदिर विश्व में शायद ही कहीं देखने को मिल सकता है। पुराणों में भी पारदेश्वर भगवान का बखान करते हुये कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में मात्र एक बार भी पारदेश्वर शिवलिंग का दर्शन कर ले उसके जन्म जन्मान्तर के करोड़ो पाप समाप्त हो जाते हैं तथा उसका जीवन धन्य हो जाता है तथा उसके घर में कभी भी दरिद्रता नहीं आती।
परम पूज्य सद्गुरूदेव डाॅ. नारायण दत्त श्रीमाली जी के पावन कर कमलों द्वारा प्रदत्त पारदेश्वर शिवलिंग तथा पूज्य गुरूदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली जी एवं श्री अरविन्द श्रीमाली जी के द्वारा 8 सितम्बर सन् 2000 को विशेष मंत्रो द्वारा प्राण प्रतिष्ठित कर स्थापित किया गया। तब से लगातार मंदिर के सेवक श्री मुरलीधर पाण्डेय जी के द्वारा विधि विधान से पूजन आरती नित्य किया जा रहा है। प्रत्येक माह के 21 तारीख को 25 लीटर गौ दूध से भगवान पारदेश्वर का रूद्राभिषेक किया जाता है। यह लगातार कई वर्षांे से चला आ रहा है। तथा प्रत्येक वर्ष गुरू जन्म दिवस के अवसर पर 21 अप्रैल को भव्य पूजन तथा हवन का कार्यक्रम सरगुजा के समस्त गुरू भाईयों के द्वारा किया जाता है। इस मंदिर में समय समय पर साधकों को  अनेकांे प्रकार के अलौकिक अनुभव होते रहते हैं।
मेरा स्वंय का अनुभव है कि इस मंदिर में स्थापित पारदेश्वर भगवान का पूजन करने से जीवन की समस्त समस्याएँ समाप्त हो जाती है, तथा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हंै।
ग्रन्थों में पारदेश्वर शिवलिंग को दुनिया का सबसे दुर्लभ और अद्वितीय बताया गया है। भगवान शिव के द्वादश ज्योतिलिंगो का सार तथा दुनिया में जितना भी शिव विग्रह स्थापित है। उन सभी स्वरूपों में सर्व श्रेष्ठ स्वरूप भगवान पारदेश्वर को ही माना गाया है।
जिसके बारे में वेदो पुराणों तथा उपनिषदों में अनेकों प्रकार से गुण गान करते हुये कहा गया है कि कोई व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा अधर्मी या पापी हो या दुष्ट हो चाहे जीवन में कितने ही छल, कपट, अत्याचार, दुराचार, हत्या, गोहत्या या बह्महत्या जैसा भी पाप क्यों न किया हो वह व्यक्ति भी अगर मात्र एक बार पूर्ण श्रध्दा विश्वास के साथ भगवान पारदेश्वर का पूजन अथवा दर्शन मात्र कर ले तो उसके जीवन के सारे पाप दोष एक पल में ही पूर्णतः समाप्त हो जाते हैं। तथा उस व्यक्ति में दिव्यता और पवित्रता का संचार होने लगता है।
हमारे वेदों और पुराणों में पारद से निर्मित मूर्तियों और शिवलिंग के दर्शन तथा  पूजन के बारे में जो कुछ भी वर्णित है वह नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ।
शिव निर्णय रत्नाकर:-
मदः कोटिगुणं स्वर्णं स्वर्णात्कोटिगुणं मणिः।
मणेः कोटिगुणं बाणो बालाल्कोटिगुणं रसः।
रसात्परतरं लिंग न भुतो न भविश्यति।।
अर्थात मिट्टी अथवा पत्थर के शिवलिंग के पुजन करके करोड़ों गुणा
अधिक फल स्वर्ण निर्मित शिवलिंग के पुजन से मिलता है स्वर्ण से करोंड़ो गुना अधिक फल मणि और मणि से करोड़ो गुणा अधिक फल बाल लिंग नर्मदेश्वर के पूजन  से प्राप्त होता है तथा नर्मदेश्वर बाललिंग से भी करोड़ो गुणा अधिक फल पारद शिवलिंग के पूजन या दर्शन से ही प्राप्त हो जाता है।
रसरत्नसमुच्चय
विधाय रस लिंगं यो भक्ति युक्तःसमचयेत्।
जगत्त्रितयलिंगगाना पूजाफलम वारनुयात्।।
अर्थात् जो भक्ति और श्रध्दा के साथ पारदशिवलिंग की पूजा करता है उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंग की पूजा का फल प्राप्त होता है तथा उसके समस्त महापाप नष्ट हो जाते है।
रसमार्तण्ड़ लिंग कोटि सहस्त्र यत्फलं सम्यगचनात्।
तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद् भवेत्।।
ब्रह्मत्यासहस्त्राणि गोहव्याशतानि च।
तत्क्षणाद्वलयं यन्ति रसलिंगस्य दर्शनात्।।
स्पशनात्प्राप्यते मुक्तिरिती सत्यं शिवोदितम्।।
अर्थात् हजारों करोड़ो शिवलिंगो की पूजा करने से जो फल प्राप्त होता है उससे भी करोड़ो गुना अधिक फल पारद शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है तथा हजारों ब्रह्म हत्याओं और गो हत्याओं का किया गया पाप भी पारद शिवलिंग के मात्र दर्शन करते ही समाप्त हो जाता है तथा पारदशिवलिंग के स्पर्श या पूजन करने से निश्चय ही समस्त प्रकार के भव बंधन से छुटकारा मिल जाता है।

वायवीय संहिता
आयुरायेग्यमैश्वर्यं यच्चान्यदपि वांछिच्तम्।
रसलिंगाचनादिष्टं सर्वतं लभेत नरः।।
अर्थात आयु आरोग्य ऐश्वर्य तथा अन्य जो भी मनो वांछित वस्तुएं है। वे सभी वस्तुएँ पारद शिवलिंग के पूजन से सहज ही प्राप्त हो जाती है।
ब्रह्म पुराण
धन्यास्ते पुरूषाः लोके येअर्चयंति रसेश्वरम्।
सर्वपापहरं देवं सर्व कामफलप्रदम्।।
ब्रह्मणाः क्षत्रियाः वैश्यास्त्रियः शुद्रान्त्यजादयः।
सम्पूज्य तं सुखम प्राप्नुवन्ति परां गतिम्।।
अर्थात संसार में मनुष्य धन्य है जो समस्त मनोवांछित फलों को देने वाले पारद शिवलिंग का पूजन दर्शन करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण – पच्यतेकाम सुत्रेण यावच्चदिवाकरौ। कृत्वा लिंग सकृत पूज्यं वसेत्काल्पसतं दिवि।।
प्रजावान भुमिवान् पुत्र बांधववास्तथा।
ज्ञानवान् मुक्विान् साधुःरसलिंगार्चनाद् भवंत्
अर्थात् जो मनुष्य एक बार भी अपने जीवन में विधि विधान से पूजन कर लेता है उसे जीवन का पुर्ण सुख प्राप्त होता है तथा उसे जीवन में धन, यश, मान, सम्मान, पद प्रतिष्ठा, पुत्र-पौत्र, विद्या आदि की कोई कमी नहीं रहती। अन्त में निश्चित ही मुक्ति प्राप्त कर लेता है।
योगशिखोपनिषद्
रसलिंगमहालिंग शिवशक्ति निकेतनम्
लिंग शिवालय प्रीवन्त सिद्धिदं सर्वदेहिनाम्।
अर्थात् रस ही महालिंग है और इसे पुराणों ने भगवान शिव का शिवालय माना है। जिसके प्राप्त होने पर सम्पूर्ण सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती है।
रस राज चिन्तामणि
ब्रह्मज्ञानेन सो युक्तों यः पापी रसनिंदकः।
नहि त्राता भवैतस्य जन्म कोटिशतैरपि।।
अर्थात् जो व्यक्ति अपने जीवन में पारद शिवलिंग की भूल से भी निंदा करता है उसे धोर पापी समझना चाहिए ऐसा व्यक्ति पारद के क्षेत्र में सफलता पा नहीं सकता और ऐसा व्यक्ति चाहे किसी भी प्रकार की साधना करले मृत्यु से उसको ब्रह्मा भी नहीं बचा सकता।
रस सार पद्धति
रससार पद्धति नामक ग्रन्थ में दो टूक शब्दों में कहा गया है कि –
दशनादशराजस्य बह्मा हत्या ल्यपोहति।
स्पर्शनोन्नाशपेद्देवी गोहथा नात्र संशयः।
किं पुनंमक्षणादेवी प्राप्यते प्रारंभ पदम्।।
अर्थात् पारद शिवलिंग का दर्शन तथा पूजन, ब्रह्म हत्या के दाषोेेें को भी नष्ट कर देता है। इसके दर्शन तथा स्पर्श से पूर्व जन्मकृत समस्त पापों का नाश हो जाता है, और यदि पारद शिवलिंग पर चढ़े हुए जल दूध या पंचामृत का सेवन कर लिया जाये तो व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख और परमपद की प्राप्ति होती है।
शताश्वमेधेन कृतेन पुण्यंगोकोटिभीः स्वर्णयहस्त्र प्रदानात ।
नृणां भवेत्सूतक दर्शनेन यत्सर्वतीथेषु कृताभिषेकात
अर्थात् जो पुण्य 100 अश्वमेध यज्ञ करने, करोडों गोदान करने तथा हजारों तोला स्वर्ण दान करने से प्राप्त होता है वही पुण्य भगवान पारदेश्वर के दर्शन मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता हैै।
रावण भी पारद का अष्ट संस्कार शोधन संपन्न कर पारदेश्वर शिवलिंग का निर्माण कर नित्य पूजन किया करता था तथा उसी पारदेश्वर भगवान की कृपा से अपनी पूरी लंका नगरी  को सोने में परिर्वतित कर दिया और साबित कर दिया कि भगवान पारदेश्वर की कृपा से सब कुछ संभव हो सकता है। यदि वास्तव मंे देखा जाए तो भगवान पारदेश्वर का दर्शन अथवा पूजन करना जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य तथा सबसे बडी़ श्रेष्ठता है, और मेरे स्वयं का मानना है कि जब मनुष्य के सात जन्मों का पुण्य जोर मारता है तब कहीं भगवान पारदेश्वर का दर्शन संभव हो पाता है। पारदेश्वर शिवलिंग को संसार का सबसे दिव्य, दुर्लभ तथा अद्वितिय शिवलिंग माना गया है। जो संपुर्ण मानव जाति के लिए वरदान स्वरूप है।
संसार की समस्त वस्तुएँ  कुछ मेहनत और प्रयास से प्राप्त किए जा सकते हैं, मगर पारदेश्वर शिवलिंग का दर्शन तो जन्म जन्मांतर के पुण्यों के प्रताप और भगवान शंकर के असीम कृपा से ही संभव हो सकता है।
यदि आपके मन में पारदेश्वर शिवलिंग के दर्शन करने की इच्छा भी जागृत हो जाये तो समझ लिजिए  कि आप के जीवन में सोभाग्य का उदय होने लगा। जिस दिन से आपके मन में  भगवान पारदेश्वर का दर्शन या पूज
न करने की दृढ़ इच्छा शक्ति जागृत हो जाय उसी क्षण से आपके पुण्यों का उदय और पापों का समन होने लगता है। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

चोर पकड़ने का चमत्कारिक प्रयोग


ॐ नाहर सिंह वीर हरै कपडे ॐ नाहर सिंह वीर चावल चपड़े सरसों के फक-फक करै सार को छोड़े चोर को पकड़े आदेश गुरू को।
विधी- इस मंत्र को सिद्ध करने का तरीका यह है कि चाँदी का एक सिक्का लें जिसमें छेद न हो, फिर इसे दूध तथा गंगा जल से धोकर धूप, लोबान जलाकर पूजन करें तत्पश्चात् शनि पुष्य नक्षत्र के दिन गोबर से जमीन को लीप कर उस पर सफेद कपड़ा बिछाकर दूध से धोकर सुखाया गया चावल रख कर उसी पर चाँदी का सिक्का भी रख दे फिर लोबान धूप गुगुल जलाकर उक्त मंत्र का 108 बार जप करें। जब प्रयोग करना हो तब या किसी चोर की पहचान करना हो तो उन्ही चावलो पर सात बार मंत्र पढ़ते हुये उसी चाँदी के सिक्के के बराबर चावल तौल कर जिस व्यक्ति पर शक हो उन्हे थोड़ा-थोड़ा चबवा दें। जिसने भी चोरी किया होगा उसके मुह से निश्चय ही खून गिरने लगेगा। (यह प्रयोग अनुभूत तथा प्रमाणिक है)  लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

सर्वकार्य सिद्धि शाबर मंत्र प्रयोग

होली की रात्रि में स्नान आदि से निवृत होकर साधना कक्ष में धूप दीप आदि जलाकर गुरू स्थापना तथा गुरू पूजन कर निम्न सर्वकार्य सिद्धि मंत्र का प्रयोग करें।
मंत्र- ॐ नमो सात समुन्द्र के बीच शिला, शिला के ऊपर सूलेमान पैगम्बर बैठा। सुलेमान पैगम्बर के चार मवक्किलतारिया, सारिया, जारिया, जमारिया। एक मवक्किल पूर्व को धाया देव-दानव को बाधिलाया दूसरा मवक्किल आश्रम को धाया भूत-प्रेत बाधि लाया तीसरा मवक्किल दक्षिण को धाया डाकिनी शाकिनी को पकडि लाया चारि मवक्किल चहुँ दिशी धावै। छल छिद्र मोऊ रहन न पावै रोग-दोष को बहावे शब्द साचा पिण्ड काचा। फुरो मंत्र ईश्वरो बाचा।
विधि- उक्त मंत्र का विधि विधान से किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम कपड़े के चार पुतले बनाये फिर उन चारो पुतलांे को रात्रि के समय चारों कोनो में गाड़़ दें। तत् पश्चात् धूप-दीप जलाकर उक्त मंत्र का 108 बार जाप करें ऐसा करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और आपके सारे कार्य स्वयं सिद्ध होने लगते हैं। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

रहस्यमयी भुतहा किला भानगढ़

राजस्थान के जयपुर के अल्वर जिले में स्थीत खौफनाक और रहस्यमयी किला जिसे भानगढ़ का किला कहा जाता है। इस किले की रोमांचकारि कहानी मन को इस कदर भयभीत कर देती है कि कोइ भी व्यक्ति रात के वक्त इस किले के आस-पास फटकने की हिमाकत नही कर सकता। आखिर क्या है इस भुतहा किले का रहस्य जो लोगों के लिए भय और आतंक का कारण बनाा हुआ है।
भानगढ़ राजपूति आन-बान और शान माने जाने वाले राजस्थान के उत्तर-पूर्वी सघन वन क्षेत्र सरिका रास्ट्रीय उद्यान के दक्षिण छोर पर अरावली के पहाड़ीयों के बीच एक रहस्यमय खण्डहर शहर के रूप मे मौजूद है। कहने को तो यहाँ बाजार, महल, बाग-बगिचे कूएं-बावडि़यां महल हवेली सब कुछ है। लेकिन सब के सब खण्डहर। मानो रातो रात यह शहर उजड़ गया हो। इस किले से संबंधित अनेकों किस्से कहानीया प्रचलीत हैं। स्थानिय लोगो में धारणा है कि यह किला शापित है। जिसके कारण लोग भयभीत रहते है।
ृ भानगढ़ के किले का निर्माण अतित के आगोस में सत्रहवीं सताब्दी में राजा माधव सिंह के द्वारा कराया गया था। राजा माधव सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे उस समय भानगढ़ की जनसंख्या तकरीबन 10.000 थी। चारों तरफ से पहाड़ों से घीरे विशाल किले में बेहतरीन शिल्प कलाओं का प्रयोग किया गया है, साथ ही साथ इस किले मे भगवान शिव तथा हनुमान जी का अति प्राचिन मंदिर भी है। इस किले में कुल पाँच द्वार तथा एक मुख्य दिवार है।
किवदंतियों के अनुसार भानगढ़ के किले पर काले जादूगर सिंधीया का श्राप है देखने मे यह किना जितना शानदार है इसका अतित भी उतना ही भयानक है। इस किले से संबंधित एक कहानी के अनुसार भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती अत्यंत सुदर और रूपवान थी उसके सुन्दरता की चर्चा पूरे राज्य मे थी। देश के अनेकों राजकुमार उससे विवाह करना चाहते थे। उस समय वह 18 वर्ष की थी और उसका यौवन उसके खुब सुरती पर चार चाँद लगा रहे थे।
एक बार की बात है राजकुमारी रत्नावती अपने सखीयों के साथ एक इत्र के दुकान पर जाकर हाथों मे इत्र लेकर उसकी खुशबू ले रही थी तभी सिंधीया नाम का एक व्यक्ति उसे कुछ दुर से बड़े गौर से निहार रहा था। सिंधीया उसी राज्य में रहता था और काले जादू में उसे महारथ हासिल थी। राजकुमारी को देखकर वह उस पर मोहित हो गया और किसी भी प्रकार से राजकुमारी को हासिल करने की कोशिस करने लगा। एक दिन उसने राजकुमारी के पसंदीदा इत्र में काला जादू कर राजकुमारी को अपने वश में करना चाहता था। परंतु इस बात की भनक राज कुमारी को लग गई तब उसने इत्र के उस बोतल को एक पत्थर पर पटक दिया जिससे बोतल टुट गई और सारा इत्र पत्थर पर बिखर गया देखते ही देखते काले जादू के प्रभाव से वह पत्थर फिसलने लगा और फिसलते हुए जादूगर सिंधीया के पास जा पहुंचा।
राज कुमारी भी पत्थर के पिछे-पिछे सिंधीया तक पहुंच गई और उसे मौत के घाट उतार दिया, परंतु मरते-मरते जादूगर सिंधीया श्राप दे गया कि इस किले में रहने वाले सभी लोगों का विनाश हो जायेगा और मरने के बाद भी उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी। उन्हे कभी मुक्ति नही मिलेगी।
जादूगर सिंधीया के मौत के कुछ दिनो के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच भयानक युद्ध हुआ जिससे किले में रहने वाले सभी लोग मारे गये, यहाँ तक कि राजकुमारी रत्नावती भी उस श्राप से नही बच पाई और उसकी भी मौत हो गई। एक साथ इतने बड़े कत्ले आम के बाद किले में मौत का सन्नाटा छा गया और आज भी उनकी अतृप्त आत्माएं घुमती रहती हैं।
इस किले से लोग इतना आतंकित हैं कि प्रसासन के द्वारा भी सतर्क रहने की हिदायत दी गई है। इस किले में सुर्यास्त के बाद प्रवेश पर प्रतिबंध है। फिलहाल इस किले की देख-रेख भारत सरकार के द्वारा की जाती है तथा किले के चारों तरफ आर्कियो लाजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम हमेशा मौजूद रहती है। ए.एस.आई.टीम ने बकायदा एक साइन बोर्ड पर सख्त हिदायत लिख रखी है कि इस इलाके में शाम होने के बाद रूकने की सख्त मना है।
कहा जाता है कि इस किले मे शाम होने के बाद जो भी गया वह कभी वापस नही आया। इस किले मे अब तक अनेकों लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। लोगो का मानना है कि इस किले मे कत्ले आम में मारे जाने वाले लोगों की रूहों का कब्जा है, आज भी उस किले में भटकती आत्माएं दिखाईदे जाती हैं। इस तथ्य की सच्चाई को परखने के लिए कई बार भारत सरकार के अर्ध सैनिक बलो के द्वारा प्रयास किया गया। परंतु वे भी असफल रही। सैनिकों ने भी किले मे रूहों के होने की बात को स्वीकारा है। कहा जाता है कि आज भी उस इलाके में तलवारो के आपस में टकराने की आवाजें तथा चीख पुकार सुनाई देती है। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

सिद्ब महाकाली शाबर मंत्र एक मंत्र दस काम


महाकाली शाबर मंत्र अत्यंत दुर्लभ और तीव्र प्रभावशाली है। इस मंत्र को पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ विधि पूर्वक जपकर सिद्ध कर लिया जाये तो साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती है, और साधक संपूर्ण सुख, सौभाग्य, ऐश्वर्य एवं धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। साथ ही साथ समस्त प्रकार की बाधायें भी स्वतः ही दूर हो जाती है।

इस मंत्र के द्वारा जन कल्याण तथा परोपकार भी किया जा सकता है। साधक इस मंत्र के द्वारा किसी भी बाधाग्रस्त व्यक्ति जैसे भूत प्रेतबाधा, आर्थिक बाधा, नजर दोष, शारीरिक मानसिक बाधा इत्यादि को आसानी से मिटा सकता है। यही नही बल्कि सम्मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उच्चाटन, विद्वेषण इत्यादि प्रयोग भी सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है।
प्रयोग विधी:- किसी भी होली, दीपावली, नवरात्रि, अथवा ग्रहण काल में इस प्रयोग को सिद्ध करना चाहिए। सर्वप्रथम निम्न सामग्रीयाँ जुटा लें। महाकाली यंत्र, महाकाली चित्र, कनेर का पीला फूल, भटकटैया का फूल, लौंग, इलायची, 3 निंबू, सिन्दूर, काले केवाच के 108 बीज धूप, दीप, नारियल, अगरबत्ती इत्यादी।
माता काली के मंदिर में या किसी एकान्त स्थान में इस साधना को सिद्ध किये जा सकते हैं।सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत होकर एक लकड़ी के तख्ते पर लाल वस्त्र बिछाकर महाकाली चित्र तथा यंत्र को स्थापित करें तत्पश्चात घी का चैमुखा दिया जलाकर गुरू गणेश का ध्यान कर गुरू स्थापन मंत्र तथा आत्मरक्षा मंत्र का प्रयोग करें। फिर भोजपत्र पर निम्न चैतीसा यंत्र का निर्माण करें तथा महाकाली यंत्र, महाकाली चित्र सहित चैंतीसा यंत्र का पंचोपचार या षोड़शोपचार से पूजन करे।
पूजन के समय कनेर, भटकटैया के फूल को यंत्र चित्र पर चढ़ायें, नारियल इलायची, पंचमेवा का भोग लगायें, फिर तीनों निम्बूओं को काटकर सिन्दूर का टीका लगाकर अर्पित करें तत्पश्चात हाथ में एक-एक केवाच के बीजों को लेकर उक्त मंत्र को पढ़ते हुए काली के चित्र के सामने चढ़ाते जायें इस तरह 108 बार मंत्र जपते हुए केवाच के बीजों को चढ़ायें। मंत्र जप पुर्ण होने पर उसी मंत्र से 11 बार हवन करें। एक ब्राम्हण को भोजन करायें तथा यथाशक्ति दान दक्षिणा दें। फिर इस मंत्र का प्रयोग किसी भी इछित कार्य के लिये कर सकते हैं।
भूत-प्रेत बाधा निवारण:- हवन के राख से किसी भी भूत-प्रेत ग्रस्त रोगी को सात बार मंत्र पढ़ते हुए झाड़ दें तथा हवन के राख का टीका लगा दें फिर भोजपत्र पर चैतिसा यंत्र को अष्टगंध से लिख कर तांबे के ताबीज में भर कर पहना दें तो भूत प्रेत बाधा सदा के लिए दूर हो जाता है।
शत्रु बाधा निवारण:- अमावस्या के दिन एक़़़़़़़़़़़़़़़ लेकर उस पर सिंदुर से शत्रु का नाम लिखकर महाकाली मंत्र का उच्चारण करते हुये 21 बार 7 सुइयां चुभाये फिर उसे श्मशान मे ले जाकर गाड़ दें तथा उस पर शराब की धार चढ़ायें ऐसा करने से 3 दिनों मे शत्रु बाधा समाप्त हो जाती है।
आर्थिक बाधा निवारण:- महाकाली यंत्र के सामने घी का दीपक जलाकर महाकाली शाबर मंत्र का 21 बार जाप 21 दिनों तक करने से आर्थिक बाधा समाप्त हो जाता है।
वशीकरण प्रयोग:- पंचमेवा को 21 बार मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित कर जिसे खिला दें वह वशीभूत हो जाता है।
विद्वेषण प्रयोग:- 3 केवाच के बीज कलिहारी का फूल तथा श्मशान की राख को मिलाकर 21 बार मंत्र द्वारा अभिमंत्रित कर जिसके घर के आने जाने वाले मार्ग में गाड़ दें उसका विद्वेषण हो जायेगा।
उच्चाटन प्रयोग:- एक केवाच के बीज भटकटैया के फूल और सिंदुर तीनों को मिलाकर मंत्र द्वारा 11 बार अभिमंत्रित कर जिसके घर में फेंक दे उसका उच्चाटन हो जायेगा।
स्तम्भन प्रयोग:-
तीन लांैग, हवन की राख, तथा श्मशान की राख तीनों को मिलाकर मंत्र से अभिमंत्रित कर जिसके घर में गाड़ दे उसका स्तम्भन हो जायेगा। समंत्र –
सात पुनम कालका, बारह बरस क्वांर।
एको देवि जानिए, चैदह भुवन द्वार।।
द्वि-पक्षे निर्मलिए, तेरह देवन देव।
अष्टभुजी परमेश्वरी, ग्यारह रूद्र सेव।।
सोलह कला सम्पुर्णी, तीन नयन भरपुर।
दशों द्वारी तू ही माँ, पांचों बाजे नूर।।
नव-निधि षट्-दर्शनी, पंद्रह तिथि जान।
चारों युग मे काल का कर काली कल्याण।।
लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

क्रिस्टल बाल और भविष्यवाणी

क्रिस्टल बाल से भुत, भविष्य तथा वर्तमान को जानने की एक पश्चात पद्धति है स्क्राइंग। स्क्राइंग का तात्पर्य है कि परावर्तक सतह पर रहस्मयी प्रतिबिंबों को देखना। इस पद्धति का प्रचार 15वीं सताब्दी में यूरोप से प्रारंभ हुआ। उस समय के तत्कालीन ब्रिटिश महारानी एलिजा बेथ के व्यक्तिगत ज्योतिषी सरजान डी को इस पद्धति के द्वारा भविष्यवाणी करने में महारथ हासिल थी।
सरजान डी ने क्रिस्टल बाल के माध्यम से कई सटिक भविष्यवाणीयां की। ब्रिटिश महारानी एलिजा बेथ से संबंधित अनेकों भविष्यवाणी भी उन्होने की थी, जो समय-समय पर सत्य घटीं। स्पेनिश हमले से पूर्व ही उन्होंने हमले से संबंधित भविष्यवाणी कर दिया था। सरजान डी के भविष्यवाणीयों से महारानी अत्यंत प्रभावित थी।
क्रिस्टल बाल क्या है
क्रिस्टल बाल एक विषेश प्रकार के क्रिस्टल से बनी पारदर्शी बाल होती है, इसे बाटिल भी कहते हैं। यह कई रंगों मे होती है, परंतु भविष्य देखने की क्रिया मे गहरे नीले पीले नारंगी या सफेद रंग के क्रिस्टल बाल का उपयोग किया जाता है।
भविष्य जानने के लिए प्रातःकाल या संध्या काल में एकांत जगह पर क्रिस्टल बाल को रखकर सामने सुगंधित अगरबत्तीयां जला कर प्रयोग किया जाता है।
क्रिस्टल बाल पर प्रयोगकर्ता द्वारा त्राटक करते हुए ध्यान की अवस्था तक पहुंच कर कोई प्रश्न किया जाता किया जाता है। प्रश्नों के उत्तर के रूप में क्रिस्टल बाल के अन्दर तरह-तरह की छवियां तथा दृष्य चलचित्र की भांति दिखाई देने लगती है जिसे मात्र प्रयोग कर्ता ही देख पाता है।
सर्वप्रथम क्रिस्टल बाल के अंदर घुंघली आकृतियां दिखाई देती हैं फिर धीरे-धीरे सब कुछ स्पष्ट होने लगता है इस प्रकार से प्रयोग कर्ता किसी भी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करने में समर्थ हो जाता है। उन्ही दृश्यों के आधार पर भविष्यवाणी किया जा सकता है। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

संभव है मृत आत्माओं से संपर्क



ब्रह्माण्ड में लाखों आत्माओं का अस्तित्व विद्यमान है। जो वायुमंडल में स्वतंत्र रूप सें विचरण करते हैं। जिनमंे कई प्रकार के आत्माएं होती है। जैसे राजा, महाराजा, वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, विद्वान, चोर, डाकू, बदमाश, सामान्य मनुष्य तथा उच्चकोटि के मनुष्य आदि, जिनमें मुख्यतः दो प्रकार की आत्माएं होती है। – दिव्यात्मा तथा दुष्टात्मा।


दिव्य आत्मा –
ये आत्माएं कभी-कभी किसी मनुष्य की जिंदगी से प्रभावित हो जाते है और उसको सहयोग भी करते है। खासकर उस व्यक्ति के जिंदगी से प्रभावित होते हैं, जिनकी जिंदगी उसी आत्मा के जिंदगी से मिलती-जुलती है, जैसे उस आत्मा ने अपनी पूर्व जिंदगी में बहुत कष्ट झेले हों और दुःखों का सामना किया हो तो वह आत्मा किसी व्यक्ति के जिंदगी के कष्टों एवं दुःखों को देख नहीं सकता, क्योंकि वह अपने जिंदगी में दुख, कष्ट, कठिनाईयों और परेशानियों से भली-भांति परिचित रहा है। अतः वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता अवश्य करता है, जो इस प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त रहता है। ऐसी आत्मा जिनकी जिंदगी से प्रभावित हो जाते हैं, उनकी जिंदगी खुशियों से भर जाती है और जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता। पग-पग पर सफलताएं कदम चूमने लगती है। गांव तथा शहरों में ऐसे सैकडों उदारण देखने को मिल जाते हैं, जैसे अनायास ही गड़े धन का पता लग जाना, चांदी के सिक्कों से भरा घड़ा मिल जाना, इच्छा करते ही उसकी पूर्ति हो जाना, एक्सीडेंट या दुर्घटना का पूर्वाभास होना यह सब दिव्यात्माओं के प्रसन्न होने के कारण अनायास ही होने लगता है।
दुष्टात्मा –
ये आत्माएं बहुत ही दुष्ट होती है। इन्हें हमेशा किसी न किसी को सताते रहने में बहुत आनंद आता है। ये आत्माएं कभी किसी का भला नहीं करती। ये आत्माएं जिनके पीछे पड़ जाती है, उसकी जिंदगी बर्बाद कर देती है। उनके परिवार में कभी सुख-शांति नहीं रहती। कदम-कदम पर हानि पहुंचाते है। उनके साथ कब कौन सी घटना घट जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस व्यक्ति पर ऐसी आत्माओं का प्रकोप हो जाता है, वह व्यक्ति पागल भी हो जाता है। दुष्ट आत्मा 
आत्माओं का रहस्य –
शरीर से निकलने के बाद सैकड़ांे वर्ष तक आत्मायें वायुमंडल में विचरण करती रहती हैं, क्योंकि वह पुनः गर्भ में जाने के इच्छुक नहीं होती या किसी ऐसे गर्भ में जन्म लेने को उत्सुक होते हैं जो उनका मनोवांछित हो। उदाहरण के लिए अधिकांश आत्मायें तो जन्म ही नहीं लेना चाहती क्योंकि उन्होंने गर्भ में या गर्भ के बाहर जो कुछ भोगा है वह ज्यादा सुखकर नहीं होता है। अगर वे जन्म भी लेना चाहें तो किसी ऐसे गर्भ की खोज में रहतें है जो सभी दृष्टियों से सुखी एवं सम्पन्न हों, तथा उन्हें खुलकर कार्य करने का मौका मिले, पर ऐसा संयोग से ही प्राप्त हो पाता है।
क्या मनोवांछित आत्माओं से बातचीत किया जा सकता है ?
मनोवांछित आत्माओं से संपर्क स्थापित कर उनसे बातचीत किया जा सकता है। यह कार्य थोड़ा कठिन है पर असंभव नहीं। आत्माओं के इस भीड़ में मनोवांछित आत्माओं को ढूंढ निकालना उतना ही कठिन कार्य है, जितना कि दिल्ली जैसे महानगरों में किसी इच्छित व्यक्ति को बिना पता के ढूंढ निकालना। परन्तु हिमालय के कुछ विशिष्ट योगियों एवं कुछ ज्ञाताओं एवं मनोवैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च एवं प्रेक्टिकल के द्वारा कुछ ऐसी विधियाँ ढूंढ निकाले हैं जिससे सामान्य व्यक्ति अथवा उच्च कोटि का साधक मनोवांछित आत्माओं से संपर्क स्थापित कर सकता है। इस बात को मानने के लिए नास्तिक एवं अंधविश्वासी जन ही शामिल नहीं है बल्कि बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी नतमस्तक होकर यह स्वीकारना पड़ता है कि वास्तव में ही भूत-प्रेतों व आत्माओं का अस्तित्व इस ब्राह्मांड में विद्यमान है। आजकल ऐसे सैकड़ों आश्चर्यजनक करिश्में गावों और शहरों में देखने को मिल जाएंगे, जो भूत-प्रेतों और आत्माओं से संबंधित होते हैं।
यदि किसी युक्ति द्वारा आत्माओं से संपर्क स्थापित कर लिया जाये तो निश्चय ही आश्चर्यजनक तथ्य हाथ लगते हैं। किसी भी आत्मा से संपर्क स्थापित कर उसके जीवन के उन रहस्यों को जाना जा सकता है। जो किसी कारण वश वह व्यक्ति किसी से बता नहीं पाया हो। इसी तरह अपने मृत पूर्वजों माता-पिता भाई बहन प्रेमी-प्रेमिका से संपर्क स्थापित कर उन रहस्यों का पता लगाया जा सकता है। जो कि वे अपने परिवारजनों से बता नहीं पाये हों या उनकी अचानक किसी एक्सीडेंट या दुर्घटना से मृत्यु हो गई हो। साथ ही साथ किसी भी प्रकार के सवालों का जवाब प्राप्त किया जा सकता है। जैसे घर से भागा हुआ व्यक्ति कहाँ है ? वह जीवित है भी या नही? मेरी शादी कब होगी ? अमुक लड़की मुझसे प्रेम करती है या नही ? नौकरी कब मिलेगी ? मुझे किस क्षेत्र में सफलता मिलेगी? परीक्षा में पास होऊँगा या फेल ? लाॅटरी या सट्टे में कल कौन सा नम्बर फसेगा ? ऐसे सैकड़ों प्रकार के सवालों का जवाब आत्मा से प्राप्त किया जा सकता है।
आत्मायें कैसे आकर्षित होती है ?
मनुष्य का शरीर जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश इन पांच तत्वों से निर्मित होता है। मृत्यु के पश्चात् जब मनुष्य स्थूल शरीर को छोड़कर सूक्ष्म शरीर धारण करता है तो इसमे मात्र दो तत्व शेष रह जातें है – वायु और आकाश तत्व, पृथ्वी तत्व समाप्त हो जाने के कारण पृथ्वी की गुरूत्वाकर्षण शक्ति का आत्माओं पर कोई असर नहीं होता। फलस्वरूप स्थूल शरीर के अलावा सूक्ष्म शरीर की शक्ति हजारों गुणा अधिक हो जाती है और विचारों के माध्यम से ही वे पूरे ब्रह्मांड में विचरण करने में समर्थ हो जाते हैं। आत्माओं की गति वायु से भी अधिक तेज होती है एक मिनट में वे पूरे ब्रह्मांड में विचरण कर सकते हैं।
आत्माओं से संपर्क स्थापित करने के लिये प्रयोगकर्ता या साधक की इच्छा शक्ति तीव्र होना अति आवश्यक है। जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं कि इस ब्रह्मांड में असंख्य आत्माएं विद्यमान हैं आत्माओं के इस भीड़ में मनोवांछित आत्माओं को बुलाने के लिए तीव्र इच्छाशक्ति का होना अति आवश्यक है।
यह इच्छाशक्ति लगभग सभी मनुष्यों में विद्यमान रहती है। किसी में ज्यादा तो किसी में कम, मगर जो लोग मंत्र, तंत्र साधना एवं सिद्धियों में रूचि रखते हैं, उन लोगों में यह इच्छाशक्ति तीव्र होनी चाहिए। क्योंकि इच्छाशक्ति के माध्यम से ही हर असंभव कार्य को संभव किया जा सकता हैं। मनुष्य के शरीर में अनंत शक्तियां छिपी है फिर भी उन शक्तियों का सद्उपयोग वह नहीं करता।
योग के प्राणायाम, त्राटक आदि क्रियाओं के द्वारा इच्छा शक्ति को प्रबल एवं मन को नियंत्रित कर लिया जाये तो मनुष्य के पास अदभुत शक्तियां प्राप्त हो जाती है। कभी-कभी आपने अनुभव किया होगा कि आप किसी प्रिय व्यक्ति की याद करते हैं। और उस व्यक्ति का फोन तुरंत आ जाता है। कभी आप किसी काम के लिए कहीं जा रहे हैं तो मन में बार-बार यह विचार आता है कि शायद वहां जाकर मेरा काम नहीं बनेगा और जब वहां पहुंचकर वह काम वास्तव में नहीं बनता तब आप हैरान रह जाते है। इसी तरह कई बार ऐसी घटना घट जाती है, जिसकी आप कल्पना करते रहतें है। यह सब इच्छाशक्ति के
माध्यम से स्वतः ही होने लगता है। जिनके पास इच्छा शक्ति अधिक होती है, उनकी संभावनाएं लगभग सत्य निकलती है।
आत्माए इसी इच्छाशक्ति के
माध्यम से आकर्षित होती हैं तथा साधक के सभी सवालों का जवाब दिया करती हंै। जैसा कि आप जानते हैं कि मन की सीमा एक सेकेंड में करोड़ों मील की रफ्तार से अधिक गतिमान रहती है। उसी तरह जब साधक आत्मा का ध्यान करता है तो पूरे ब्रह्मांड में मस्तिष्क की अल्फा तरंगे फैल जाती है और तीव्र इच्छा शक्ति के माध्यम से मनोवांछित आत्माओं तक संदेश प्राप्त हो जाता है तथा मस्तिष्क की विद्युत धारा की तरंगें आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। फलस्वरूप आत्माएं साधक के पास आकर अपने अनुसार जवाब दिया करती हैं।
आत्मा आह्वान की विधि – आत्मा आह्वान की कई विधियां भारत में प्रचलित है – आटोमेटिक राइटिंग (स्वचलित लेखन), आटोमैटिक टायपिंग, बालक के द्वारा, यंत्र द्वारा आत्मा आह्वान, प्लेनचिट द्वारा तथा आत्म रत्न के द्वारा।
आटोमेटिक रायटिंग –
इस विधि में साधक को एक माध्यम की आवश्यकता होती है जो सरल चिŸा और निस्वार्थ मन का व्यक्ति हो। अनुभवी साधक या व्यक्ति बिना माध्यम के भी यह प्रयोग स्वयं कर सकता है। इस प्रयोग को रात में किसी शांत कमरे में करना चाहिए। सर्वप्रथम कमरे में धूप या अगरबत्ती जलाकर कमरे के वातावरण को शुद्ध एवं पवित्र बना लें। तत्पश्चात् माध्यम को पीले आसन पर बैठाकर चारो तरफ 4-5 व्यक्तियों को बैठा दें और माध्यम के हाथ में एक पेन दे दें तथा सामने एक कापी रख दें। अब सभी लोग हाथ जोड़कर किसी आत्मा का आह्वान करें और साधक आत्मा आह्वान मंत्र का 11 या 21 बार जप करें। तो आत्मा उस माध्यम के शरीर में प्रवेश कर जाता है तथा आपके द्वारा पूछे गये सवालों का जवाब कलम से कापी के पन्नों पर लिख कर देता है।
आटोमेटिक टायपिंग –
यह भी आटोमेटिक रायटिंग की तरह प्रयोग किया जाता है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि इस विधि में टायपिंग की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रयोग में
माध्यम को टाईप राइटर के सामने बैठाकर उपरोक्त विधि के अनुसार आत्मा का आह्वान किया जाता है, तब आत्मा आकर टाइप राइटर के जरिये साधक द्वारा पूछे गये सवालों का जवाब देता है।
बालक द्वारा –
इस प्रयोग के लिए 8 या 10 वर्ष के आयु के बालक की आवश्यकता पड़ती है, जो शांत चित् और सरल स्वभाव का हो। उसे एक छोटे से कमरे में बैठाकर 6-7 व्यक्ति उसके सामने बैठ जायें तथा कमरे को अगरबŸाी जलाकर वातावरण को शुद्ध कर दें और बालक के कपड़े पर इत्र लगा दें। फिर साधक आत्मा आह्वान मंत्र का 21 बार आत्मा के नाम सहित उच्चारण करें और सामने बैठे हुए सभी व्यक्ति हाथ जोड़कर निवेदन करें कि अमुक आत्मा इस बालक के शरीर में विराजमान हों। ऐसा 5 या 7 बार करने से बालक के चेहरे का रंग स्वतः बदल जाएगा। तब आप समझ लें कि आत्मा आ गई है। अब आप उस आत्मा से उसका नाम पूछें। फिर जो भी सवाल पूछना चाहते हों वह पूछ सकते हैं।
आत्मा आह्वान यंत्र-
यह यंत्र विशेष प्रकार से ताम्र पत्र पर अंकित होता है। यह यंत्र बहुत प्रभावशाली होता है। इसके माध्यम से किसी भी आत्मा सें डायरेक्ट संबंध स्थापित किया जा सकता है और सामान्य व्यक्ति भी इसके माध्यम से किसी भी आत्मा से डायरेक्ट संबंध स्थापित किया जा सकता है और सामान्य व्यक्ति भी इसके माध्यम से किसी भी आत्मा से किसी भी प्रकार के सवालों का जवाब प्राप्त कर सकता है। इस प्रयोग को रात के सात बजे के लगभग करना चाहिए। सर्वप्रथम लकड़ी के तख्ते पर सफेद आसन बिछाकर आत्मा आह्वान यंत्र को स्थापित कर दें और सामने घी का एक दीपक जला दें तथा अगरबŸाी धूप या गुगुल जलाकर कमरें के वातावरण को शुद्ध बना लें। तत्पश्चात् आत्मा आह्वान मंत्र का 21 बार जप करें। तो दीपक की लौ हिलकर इस बात का संकेत देता है कि आत्मा यंत्र में विराजमान हो गयी है। कभी-कभी तेज हवा का झोंका का अनुभव भी होता है। तब हाथ जोड़कर नम्र भाव से जो कुछ पूछना हो वह पूछ सकते हैं और अंत में हाथ जोड़कर कहें आप हमारे बुलाने पर आये इसके लिए आपको धन्यवाद। अब आप जा सकते हैं। इसी तरह आप अपनी समस्याओं का समाधान आत्माओं के द्वारा पूछ सकते हैं। ध्यान रहे किसी आत्मा को बार-बार बुलाकर कष्ट न दें।
प्लेनचिट –
प्लेनचिट का अविष्कार 1889 में इंग्लैंड के परावैज्ञानिक चैटस्मिथ के द्वारा किया गया था। इस प्रयोग में एक सनमाईका प्लाई की आवश्यकता होती है जो दो फिट लंबा और दो फिट चैड़ा होता है। उस सनमाईका में किसी पेंट से एक गोल घेरा बनाएं उसके चारों तरफ ’ए‘ से ’जेड‘ तक के सारे अक्षर क्रमानुसार लिखें और घेरे के बीच एक से नौ तक के अंक भी लिखें तथा एक शून्य भी बनायें चारों दिशाओं में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भी लिखें। घेरे के मध्य में यस और नो लिखें। फिर उसे धूप में सुखा दें। जब प्रयोग करना हो, तब किसी एकांत कमरे में धूप दीप जलाकर कमरे के वातावरण को शुद्ध बना लें। तत्पश्चात कांसा, त्रिधातु या अष्ट धातु से निर्मित कटोरी या प्लेनचिट उलटा रखें जो विशेष अवसर पर निर्मित एवं आत्मा आह्वान मंत्र से चैतन्य किया गया हो। फिर 4-5 व्यक्ति उस कटोरी पर हल्के से अपनी तर्जनी उंगली रखें। तत्पश्चात जिस आत्मा को बुलाना हो उस आत्मा का ध्यान करते हुए आत्मा आह्वान मंत्र का 11 या 21 बार जप करें तो कटोरी स्वयं चलने लगेगी तब एक कोने में मिश्री या शक्कर का नैवेद्य रख दें और उस आत्मा से उसका नाम पूछें तो वह कटोरी फिसलती हुई पहले आर में फिर ए पर फिर एम फिर आर, ए, जे पर प्लेनचिट फिसलती हुई जाएगी इस तरह उन शब्दों को जोड़कर रामराज शब्द बनेंगे इस तरह स्पष्ट हो जाएगा कि रामराज नाम की आत्मा आपके प्लेनचिट में विराजमान हो गयी है, तब आपको जो भी सवाल पूछना हो वह पूछ सकते है। सभी सवालों का जवाब कटोरी या प्लेनचिट फिसलती हुई देगी। इस प्रयोग में विस्तारित जवाब की आशा न करें।
सभी सवालों का जवाब हां या नहीं में प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रयोग को प्रदर्शन के उद्ेश्य से कदापि न करें। हमेशा जन कल्याण की भावना से इस प्रयोग को करना चाहिए। कोई भी सामान्य व्यक्ति या साधक यह प्रयोग सफलतापूर्वक कर सकता है। बसरते प्लेनचिट प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो।
आत्मरत्न:-
भारत के पौराणिक गं्रथों में एक विशेष प्रकार के रत्न का उल्लेख मिलता है, जिसे ’आत्मरत्न‘ कहते है। इस रत्न को सोने या चांदी की अंगूठी में जड़वाकर पहनने से कोई दिव्य आत्मा हमेशा उसकी रक्षा करती है। विदेशों में इस प्रकार की मुद्रिका को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। विदेशों में बहुत से लोग ऐसी मुद्रिका को
धारण किये रहते है।
इस रत्न की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे गौर से देखने पर इसकी लकीरें हिलती-डुलती नजर आती हैं। आत्मा आह्वान में इस रत्न की बहुत विशेषता होती है। इसके द्वारा आत्माओं से डायरेक्ट संबंध स्थापित किये जा सकते है। इस मुद्रिका पर त्राटक करते हुए जिस आत्मा का आह्वान किया जाता है, वह आत्मा तुरंत उस रत्न में दिखाई देने लगती है। तब जो भी प्रश्न पूछना हो पूछ सकते हैं। सभी सवालों का जवाब प्रश्नकर्ता के मन में स्वतः मिल जाता है।
इस तरह आत्माओं से संपर्क स्थापित करके सभी प्रकार के सवालों का जवाब प्राप्त किया जा सकता है एवं समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इस प्रकार आप जनहित एवं लोक कल्याण कर समाज में अपना नाम रोशन कर सकते है। इस क्षेत्र में रूचि रखने वाले साधकों एवं पाठकों को इच्छाशक्ति
साधना अवश्य कर लेना चाहिए। जिससे आत्माओं से संपर्क स्थापित करने में कोई कठिनाई न हो। साधना विधि निम्न प्रकार से है – किसी भी माह की पूर्णिमा को रात्रि 10 बजे स्नान कर सफेद धोती पहनकर पूजा कक्ष में पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठ जायें। सामने किसी तख्ते पर सफेद आसन बिछाकर इच्छाशक्ति यंत्र को स्थापित करें। तत्पश्चात विद्युत माला से निम्न मंत्र का 21 माला जप करें।
मंत्र – ॐ हृीं क्लीं क्लीं हृीं ॐ
इस प्रकार 6 दिन तक करें तो साधक की इच्छाशक्ति तीव्र हो जाती है। वह किसी भी आत्मा से संपर्क स्थापित करने में समर्थ हो जाता है।
आत्मा आह्वान मंत्र-
ॐ हृीं क्लीं अमुक आत्मा स्थापयामि फट्।
उक्त मंत्र को इच्छा शक्ति मंत्र के बाद उसी माला से सात माला जप करना चाहिए। अमुक के स्थान पर जिस आत्मा को बुलाना चाहें उसका नाम लें। लेखक- प्रदीप गोस्वामी (संपादक- रहस्यों के खोज में, आध्यात्मिक पत्रिका) मो.न.09753640635

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

रहस्य पुनर्जन्म का

पुर्वजन्म, पूर्नजन्म, भुत-प्रेत आत्मा यह सब वैज्ञानिकों के लिए विवादास्पद विषय हैं, क्योंकि वैज्ञानिक प्रत्येक बात को विज्ञान की कसौटी पर कसने का प्रयास करते हैं, परंतु कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिसे विज्ञान की कसौटी पर कसा नही जा सकता। ऐसे ही रहस्यमई विषयों को आध्यात्म के भाषा में अलौकिक तथा पारलौकिक कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गिता में स्पष्ट रूप से कहा है कि आत्मा न कभी मरती है न हि कभी जन्म लेती है, और यथार्थ भी यही है मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व शेष रह जाता है और और समय आने पर उसे पुर्नजन्म लेना पड़ता है।
वैज्ञानिक व्यक्ति हो अथवा आध्यात्मिक परंतु एक बात से तो कोई भी इन्कार नही कर सकता कि शरीर में कोई ऐसी चीज तो जरूर होती है जिसके कारण प्राणी जीवित रहता है, तथा उसके शरीर से निकलते ही मृत्यु हो जाती है। उसी तत्व को
आध्यात्म की भाषा में आत्मा के नाम  संबोधित किया गया है।
और अगर आत्मा जैसी कोई चीज है तो शरीर से निकलने के बाद भी उसका अस्तित्व होता ही होगा, चाहे हम उसे अपनी नंगी आखों से देख पायें अथवा नही।
इस बात को तो वैज्ञानिक भी मानते हैं कि कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं  जिसे आँखों से देख पाना संभव नही जैसे-हवा, खुशबु, बदबु इत्यादि  चीजें दिखाई नही देते मगर इनके होने का एहसास हमारी इन्द्रियों के द्वारा किया जा सकता है।
परंतु कुछ चीजें ऐसी भी होती हैं जो न तो दिखाई देती हैं न हि उनका एहसास होता है जैसे-रेडियो प्रसारण तरंगें, दुरदर्शन तरंगें, मोबाइल की तरंगें।  यह सभी तरंगें वैज्ञानिक उपकरणों के द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं और इन्हें पकड़ने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा निर्मित इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है।
ठीक इसी प्रकार आत्मा की कल्पना की जा सकती है, जो मृत्यु के पश्चात वायु मंडल में इलेक्ट्राॅनिक तरंगों की भांति स्वतंत्र रूप से विचरण करती है तथा पुनः किसी शरीर में प्रवेश कर अपने अस्तित्व का एहसास कराती है।
पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों ने भी आत्माओं के अस्तित्व को स्वीकारा है तथा पुर्वजन्म, पुर्नजन्म, आत्मा, भुत-प्रेत इत्यादि विषयों पर अनेकांे शोध एव खोज किए जा रहे हैं।
अब तक सैकड़ो लोगों ने अपने पुर्नजन्म में होने का प्रमाण दिया है, अनेक लोगों ने अपने पुर्वजन्म मे घटी हुई घटनाओं को    स्पस्ट रूप से और पुरे प्रमाणिकता के साथ बताकर यह सिद्ध कर दिया कि वास्तव में ही यह उनका पुर्नजन्म है।
साथ ही पुर्वजन्म के माँ-बाप,भाई,बहनों,सगे,
सम्बधी, सभी के नाम बताकर तथा उन सभी को पहचान कर सबको हैरत में डाल चुके हैं। उनके बताये अनुसार अनेकों डाॅक्टरों तथा वैज्ञानिकों ने भी निरिक्षण किया जिससे पूर्वजन्म की घटनाएं सत्य एवं प्रमाणित साबित हो चुकी हैं।
कई घटनाएं तो डाॅक्टरों तथा वैज्ञानिकों को भी हैरत में डाल देती हैं, जब किसी व्यक्ति को डाक्टरों द्वारा मृत घोषित कर दिया जाता है और कुछ ही देर बाद जब वह जीवित हो उठता है तब डाॅक्टर, वैज्ञानिक सभी आवाक रह जाते हैं। पुर्नजीवित होने की ऐसी भी घटनाएं अनेकों बार घट चुकी हैं।